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आलू की खेती करने का आसान तरीका | Potato Farming In Hindi

      किसान भाईयो हमारे देश भारत मे आलू को सब्जियों का राजा कहते हो. आलू की खेती को ज्यादातर रबी मौसम या फिर शरद मौसम मे की जाती है. आलू की खेती को अकाल नाशक फसल भी कहते है क्योंकि इसकी उपज क्षमता समय के अनुसार बाकी सभी फसलों से ज्यादा होती है. आलू के सभी कंद पोषक तत्वों से भरपूर होते है, जो छोटे छोटे बच्चो से लेकर बूढ़े आदमी तक का पोषण करता है. आज के समय मे तो आलू का एक पौष्टिक भोजन के रूप में इस्तेमाल होने लगा है. बढ़ती महगाई और आबादी के कुपोषण से बचने के लिए सिर्फ आलू की फसल ही मदद गार है.

     आलू के कंद जमीन के अंदर लगते है. भारत में सबसे ज्यादा आलू की खेती उत्तर मे मैदानी इलाकों में कि जाती है. आलू की खेती के लिए ज्यादा बारिश की जरूरत नहीं होती है.

आलू की खेती के लिए मिट्टी 

     आलू की खेती के लिए मिट्टी पानी निकासी वाली और कार्बनिक तत्वों से भरपूर होनी चाहिए. आलू की खेती के लिए पी. एच. सामान्य होनी चाहिए, जल भराव वाली जमीन आलू की खेती के लिए उचित साबित नहीं होती है.

आलू की खेती के लिए जलवायु और तापमान

तापमान

     आलू की खेती मे तापमान का महत्व बहुत ज्यादा होता है क्योंकि आलू के लिए ज्यादा और कम तापमान नुकसानदायक साबित होता है. आलू के पौधों को शुरुवात मे अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत पड़ती है. आलू के पौधे के विकास के लिए 20'c तापमान के आसपास की जरूरत पड़ती है और फसल की पकाई के समय 25'c के आसपास का तापमान जरूरी होता है, इस तापमान से अधिक तापमान फसल के लिए हानिकारक होता है. ट्राइकोडर्मा का खेती मे महत्व

जलवायु

     आलू की फसल के लिए सबसे अच्छी जलवायु उष्णकटिबंधीय और समशितोष्ण होती है. भारत में ज्यादातर आलू को शरदी के मौसम में उगाया जाता है, मगर ठंड के मौसम मे पड़ने वाला पाला इसकी पैदावार मे काफी नुकसान पोहचाता है. आलू के पौधे को हल्की बारिश की जरूरत होती है.

आलू की खेती के लिए खरपतवार का नियंत्रण

     आलू की खेती मे आप दो तरीकों से खरपतवार का नियंत्रण कर सकते है. 

रासायनिक 

      अगर आप रासायनिक दवाई का उपयोग करके खरपतवार नियंत्रण करना चाहते हो तो आप Pendimethalin या फिर Glyphosate को उचित मात्रा में इस्तेमाल कर सकते हो.

प्राकृतिक

      अगर आप प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करना चाहते हो तो आपको गुड़ाई करनी होगी जिसमें पौधे की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 20 या 25 दिन के बाद दूसरी गुड़ाई उसके 15 दिन बाद करनी होगी.

आलू की खेती के लिए किस्में

     आलू की खेती के लिए वर्तमान समय में बहुत सारी प्रजातियां मोजूद है, जिसको उत्पादन और विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर तैयार किया जाता है. हमने नीचे कुछ किस्मों के बारे में जानकारी देने की कोशिश कि है

कुफरी अशोक :- आलू की इस किस्म को मैदानी भागो मे उगाने के लिए तैयार किया गया है. कुफरी अशोक के पौधे बीच रोपाई के लगभग 80 दिनों के बाद पककर तैयार हो जाते है. यह किस्म का उत्पादन प्रति हैक्टेयर 280 क्विंटल तक का होता है.

कुफरी लवकर :- यह किस्म को महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 100 से 120 दिनों के बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते है. इसके कंद का रंग सफेद होता है और इसका प्रति हेक्टर 250 क्विंटल उत्पादन होता है.

कुफरी चंद्रमुखी :- यह किस्म को ज्यादातर अगेती फसल के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 90 दिन बाद पककर तैयार हो जाते है और खुदाई कर सकते है, इस किस्म के आलू का रंग हल्का भूरा होता है. इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 250 क्विंटल के आसपास होता है.

कुफरी ज्योति :- यह किस्म को ज्यादातर पहाड़ी इलाकों के लिए विकसित की गई है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 130 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाता है. इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल तक का होता है.

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जे एच-222 :- यह किस्म का कुफरी जवाहर के नाम से भी जाना जाता है, यह एक संकर जाती की किस्म है. इस किस्म के पौधे पर झुलसा रोग देखने को नहीं मिलते है. यह बीज रोपाई के लगभग 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है और इसका उत्पादन 250 से 300 क्विंटल तक का होता है.

जे. एफ.5106 :- यह किस्म को ज्यादातर उत्तरी भाग मे उगाया जाता है. यह किस्म का पौधा लगभग बीज रोपाई के 75 दिनों के बाद तैयार हो जाता है और इसका उत्पादन 250 से 280 क्विंटल प्रति एकड़ तक का होता है.

जे. ई. एक्स.166 सी :- आलू की इस किस्म को सबसे ज्यादा उत्तर भारत मे उगाया जाता है. इस पौधे के बीज रोपाई के 100 दिन के बाद तैयार हो जाते है और इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 280 क्विंटल तक का होता है.

कुफरी बहार :- यह किस्म को ई 3792 के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म को अगेती और पछेती के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह किस्म अगेती मे बीज रोपाई के 90 दिनों बाद तैयार होती है और पछेती मे 130 दिन बाद तैयार होती है. इस किस्म के आलुओ का रंग हल्का सफेद होता है.

     इसके अलावा बाजार मे बहुत सारी किस्में मोजूद है जिसे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन के लिए उगाया जाता है.

आलू की खेती के लिए रोग नियंत्रण

      आलू की खेती मे बहुत तरह के रोग देखने को मिलते है, जिसका सही समय पर नियंत्रण करना जरूरी होता है.

➡️ आलू के पौधे मे ब्लैक स्कर्क नाम का रोग होता है जो बीज के अंकुरण के बाद किसी भी समय दिखाई पड़ता है. यह रोग के नियंत्रण के लिए आप Carbendazim की उचित मात्रा लेकर फसल मे छिड़काव कर सकते है.

➡️ आलू के पौधे मे लगने वाले लीफ रोल रोग की वजह से पौधे की पत्तियां अंदर की तरफ मुड़ने लगती है जिसके छूते ही पत्ती जमीन पर गिर पड़ती है. इस रोग के नियंत्रण के लिए आप Endosulfan नाम की दावा का इस्तेमाल कर सकते है.

➡️ कटुआ किट नाम का किट आलू की फसल को नुकसान पहोचाता है, जिससे उत्पादन मे बहुत नुकसान होता है यह रोग के निदान के लिए आप Thiamethoxam का उपयोग कर सकते है.

आलू के पौधे की सिंचाई 

     आलू के पौधों को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत उसके पौधों के विकास के समय पर होती है, इस दौरान आप अपने खेत में जमीन की नमी को कम ना होने दे, क्योंकि अगर आप कंद का विकास अच्छा करते हो तो आपको उत्पादन उससे ज्यादा मिलेगा. आलू के कंद को जमीन मे लगाने के 5 दिन बाद पानी देना चाहिए और बाद में जब पौधे मे से अंकुर निकल आए तभी 10 से 15 दिन के अंतर मे पानी देना उत्तम होता है.

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आलू की खुदाई कब करें

     आलू की ज्यादातर किस्में लगभग 90 दिनों के आसपास पककर तैयार हो जाती है और कुछ किस्में 100 से 120 दिनों का समय लेती है. आलू के पकने के बाद उसको खोदकर निकाल देना चाहिए और उनको साफ पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए, जिससे उस पर लगी मिट्टी साफ हो जाती है. आलू की सफाई के बाद अलग अलग आकर के आलूओ को अलग करना होता है, जिसमे से सामान्य आकार के आलू को बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए और बाकी बचे छोटे और ज्यादा बड़े आकर के आलू को एक ठंडी जगह पर बीज के तौर पर रख दिया जाता है.

FAQ

Q. एक बीघा में आलू कितना निकलता है ?

A. 70 क्विंटल के आसपास 

Q. आलू की खेती कौन से महीने में की जाती है ?

A. अक्टूम्बर- दिसम्बर महीने में 

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